"बुरे न मैं हू ,न बुरे तुम "
बुरा न मैं हू ,न बुरे तुम
फिर क्यों है ये नफरत ,
फिर क्यों हैं बनावटी इंसान ,
फिर क्यों नहीं सब में मोहब्बत ,
फिर क्यों नहीं हैं सब साथ ...
बुरा न मैं हू ,न बुरे तुम
फिर क्यों ये धोखा ,
फिर क्यों हैं ये पाप ,
फिर क्यों नहीं हैं बचपन ,
फिर कहा गया वो ईमान...
बुरा न मैं हू ,न बुरे तुम
फिर क्यों हैं ये लोभ ,
फिर क्यों हैं ये काम ,
फिर क्यों नहीं हैं हम संतुष्ट,
कहा गया वो भीतर का राम ...
बुरा न मैं हू ,न बुरे तुम
फिर क्यों हैं गरीबी,दर्द
और बेसहारा ,
फिर क्यों नहीं चारो तरफ
सिर्फ अच्छाई का बोल बाला ...
शायद हमने ही नकाब पहना
और खुद को संत कह डाला ,
हां बुरा हू मैं ,थोड़े बुरे तुम
और शायद थोडा बुरे हैं
वो श्रृष्टि रचने वाला
- अनिमेष शाह
nice one...seems reading a gita is fianlly paying off..!!!!
ReplyDeletearre waah!!! good work....very impressive.
ReplyDeleteअच्छी कविता है. रचना पोस्ट करने के पहले अगर मात्राएँ check कर लें तो बेहतर होगा.
ReplyDeleteविकल्प
whynotvikalp.blogspot.in
@vikalp thanks for the correction sir, i am not so sound when it comes to writing in hindi,m happy still u liked it.
ReplyDeleteawsme.... spcly the last 3 lines ...
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